कवि कृपाराम जी द्वारा लिखित नीति के दोहे
देखै नही कदास, नह्चै कर कुनफ़ौ नफ़ौ |
रोळां रो इकळास, रौळ मचावै राजिया ||
जो लोग हानि-लाभ की और कभी देखते नही,ऐसे विचारहीन लोगों से मेल-मिलाप अंततः उपद्रव ही पैदा करता है |
कूड़ा कुड़ प्रकास, अण हुती मेलै इसी |
उड़ती रहै अकास, रजी न लागै राजिया ||
झूटे लोग ऐसी अघटित बातों का झूटा प्रचार करते है कि वे आकाश में ही उड़ती रहती है | हे राजिया ! धरती की रज तो उन्हें छू भी नही पाती |
उपजावे अनुराग, कोयल मन हरकत करै |
कड्वो लागे काग, रसना रा गुण राजिया ||
कोयल लोगो के मन में प्रेम,अनुराग उत्पन्न कर आनन्दित करती है, जबकि कौवा सब को कड़वा लगता है | हे राजिया ! यह सब वाणी का ही परिणाम है |
भली बुरी री भीत, नह आणै मन में निखद |
निलजी सदा नचीत, रहै सयांणा राजिया ||
नीच व्यक्ति अपने मन में भली और बुरी बातों का तनिक भी भय नही लाते | हे राजिया ! वे निर्ल्लज तो सयाने बने हुए सदैव निश्चिंत रहते है |
ऐस अमल आराम, सुख उछाह भेळ सयण |
होका बिना हगांम, रंग रौ हुवे न राजिया ||
ऐस आराम,अफीम रस की मान मनुहार और मित्र मंडली के साथ आनंद उत्सव के समय हे राजिया ! यदि
हुक्का नही हो,तो मजलिस में रंग नही जमता |
मद विद्या धन मान, ओछा सो उकळै अवट |
आधण रे उनमान , रहैक वीरळा राजिया ||
विद्या, धन और प्रतिष्ठा पाकर ओछे आदमी अभिमान में उछलने लग जाते है | आदहन की भांति मर्यादा में यथावत रहने वाले लोग तो विरले ही होते है |
तुरत बिगाड़े तांह , पर गुण स्वाद स्वरूप नै |
मित्राई पय मांह , रीगल खटाई राजिया ||
जिस प्रकार दूध में खटाई पड़ने पर उसके गुण,स्वाद और स्वरूप में विकृति आ जाती है, उसी प्रकार हे राजिया ! मसखरियों से मन मन फटकर मित्रता शीघ्र ही नष्ट हो जाती है |
सब देखै संसार, निपट करै गाहक निजर |
जाणै जांणणहार, रतना पारख राजिया ||
यों तो सभी लोग ग्राहक की नजर से वस्तुओ को देखते है किंतु उनके गुण दोषों की पहचान हर एक व्यक्ति नही कर सकता | हे राजिया ! रत्नों की परख तो केवल जौहरी ही कर सकता है |
मूरख टोळ तमांम घसकां राळै अत घणी |
गतराडो गुणग्रांम, रांडोल्या मझ राजिया ||
मूर्खों की मंडली में ही मूढ़ व्यक्ति बहुत अधिक गप्पे हांकता रहता है, जैसे रांडोल्यों में हिजड़ा भी गुणवान समझा जाता है |
हुवै न बुझणहार, जांणै कुण कीमत जठै |
बिन गाहक ब्योपार, रुळयौ गिणैजै राजिया ||
जहाँ पर कोई पूछने वाला भी न हो, वहां उस व्यक्ति या वस्तु का मूल्य कौन जानेगा ? निश्चय ही बिना ग्राहक के व्यापार चौपट हो जाता है | हे राजिया ! इसी तरह गुणग्राहक के बिना गुणवान की कद्र नही हो सकती |
गुणी सपत सुर गाय, कियौ किसब मुरख कनै |
जांणै रुनौ जाय, रन रोही में राजिया ||
गायक ने गीत के सातों स्वरों को गाकर मूर्ख व्यक्ति के सामने अपनी कला का प्रदर्शन किया, किंतु उसे ऐसा लगा,मानो वह सुने जंगल में गाकर रोया हो | (अ-रसिक एवं गुणहीन व्यक्ति के संमुख कला का प्रदर्शन अरण्य रोदन के समान ही होता है )
पय मीठा पाक, जो इमरत सींचीजिए |
उर कड़वाई आक, रंच न मुकै राजिया ||
आक भले ही मीठे दूध अथवा अमृत से सींचा जाय, किंतु वह अपने अन्दर का कड़वापण किंचित भी नही छोड़ता | इसी प्रकार हे राजिया ! कुटिल व्यक्ति के साथ कितना ही मधुर व्यवहार किया जाए वह अपनी कुटिलता नही छोड़ता |
रोटी चरखो राम, इतरौ मुतलब आपरौ |
की डोकरियां कांम, रांम कथा सूं राजिया ||
बूढीयाओं को तो रोटी,चरखा और राम-भजन, केवल इन्ही से सरोकार है ! हे राजिया उन्हें राजनितिक चर्चाओं से भला क्या लेना देना ?
जिण मारग औ जात, भुंडी हो अथवा भली |
बिसनी सूं सौ बात, रह्यो न जावै राजिया ||
व्यसनी पुरूष जिस मार्ग पर चलता है,चाहे वह वस्तु बुरी हो या भली वह किसी भी स्थिति में उसे छोड़ नही सकता,यह सौ बातों की एक बात है |
कारण कटक न कीध, सखरा चाहिजई सुपह |
लंक विकट गढ़ लीध, रींछ बांदरा राजिया ||
युद्ध विजय के लिए बड़ी सेना की अपेक्षा कुशल नेतृत्व ही मुख्य कारण होता है | हे राजिया ! श्रेष्ठ संचालक के कारण लंका जैसे अजेय दुर्ग को रींछ और बंदरों ने ही जीत लिया |
डा. शक्तिदान कविया द्वारा लिखित पुस्तक "राजिया रा सौरठा" से साभार |
Khas khabar
बुधवार, 10 फ़रवरी 2010
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